Saturday, May 24, 2014

स्मृतियों का अल्बम

पच्चीस बरस पहले की
स्मृतियों के अल्बम  से गुजरते हुए
यूँ लगता है जैसे हम अब  वो न रहे
जो हम हुआ करते थे
चित्र दर चित्र!
कितने चेहरे बिछड़ गए
कोई दुश्मन सा लगा कोई मित्र
ये चाचा की गोद में छोटी बहन
आज खुद अपने बच्चे पाल रही है
ये छोटू -कैसे खी -खी  हंस रहा है
आज कितना बड़ा अधिकारी है!
और मम्मी पापा लग रहे
कितने सुन्दर और स्वस्थ
आज क्यों हो गए अशक्त?
ये मांमाँ जी!
कितने अच्छे थे
बेचारे कैंसर से चले गए
स्वयं  को देख कर ऐसा भी लगता है
अरे वाह!
क्या हम इतने सुन्दर थे?
मगर  तब ऐसा क्यों नहीं लगा?
काश समय का पहिया घूम जाता
और वापस मिल जाता -
वही चिकना चेहरा ,काले बाल
बिना चश्मे की ऑंखें
साथ ही मिल जाती
 अवसरों की अपार संभावनाएं
जो हमने खो दिए
तो हम उन्हें पूरा वक़्त देते
कुछ गलत निर्णय
जो ज़िन्दगी में लिए
फिर नहीं लेते
मगर फिर लगता है -
समय का पहिया घूमेगा
तो अक्ल भी तो फिर
पहले सी हो जाएगी
अधकचरा!
नहीं!
हम वहीँ ठीक हैं जहाँ हम हैं
इस क्षण पर
ज़िन्दगी के विस्तृत अनुभवों के साथ !
और परिवर्तन के अतिरिक्त कुछ स्थायी नहीं !

                                               मंजुश्री 

Wednesday, May 14, 2014

ज़िन्दगी से जंग

ज़िन्दगी  !
दो दो हाथ कर लें 
कोशिश कर तू 
मुझे पटखनी देने की 
ये ले मैं फिर जीती
तूने हर रास्ते बंद कर दिए?
ले मैं निकल गयी
पतली गली से !
अरे अरे।
फ़िर नयी चुनौतियां?
तूने समझ क्या रखा है मुझे?
मैं और मजबूत बन कर
लड़ूंगी तुझसे 
तू है किस खेत की मूली ?
लड़ती जाउंगी 
कभी चोट खाऊँगी 
कभी हार जाऊँगी 
मगर फिर भी लड़ती जाउंगी````` 
जब तक तू
सुधर नहीं जाती 
या फिर तू 
चली नहीं जाती !