Wednesday, November 6, 2013



             दौड़ कहाँ ?

सारे तीरथ करके आये 
मन की थाह न ली तो क्या?
इधर उधर बाहर को दौड़े 
घर की बात न की तो क्या?
हर एक को खुश करने में 
खुद की ख़ुशी नहीं पहचानी 
दुनिया भर को वक़्त दिया 
अपनों को दिया बिसार तो क्या? 
धन ,पद ,यश और काम की दौड़े 
मंजिल कभी मिली है क्या?
क्या राजा क्या रंक धरा पर 
अंत सभी का एक न क्या ?
                                     डॉ मंजुश्री गुप्ता      

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