Sunday, May 26, 2013

ग्लोबल गाँव का आदमी 

इन्टरनेट ,वाई फाई ,लैपटॉप ,कंप्यूटर .....
वेबकैम ,हेड फोन ,ब्लू टूथ ,एंड्राइड फोन 
तरह तरह के उपकरणों से .....
लैस हुआ जाता है 

 ग्लोबल गाँव का आदमी
ट्विटर ,फेस बुक ,मेसंजेर, स्काइप, व्हाट्स एप
से दुनिया भर के लोगों से जुड़ जाता है
मगर घर ,परिवार और पड़ोस में क्या हो रहा है
पता नहीं पाता है

 ग्लोबल गाँव का आदमी
जी पी एस ,गूगलअर्थ के सहारे दुनिया घूम घूम आता है
मगर शहर की गलियों से अनजान रह जाता है

 ग्लोबल गाँव का आदमी
सबसे हर समय जुड़े रहने के चक्कर में
खुद से कटा चला जाता है--------
वर्चुअल वर्ल्ड की भीड़ में कहीं न कहीं खुद को
तन्हाईयों से घिरा पाता है

 ग्लोबल गाँव का आदमी 

Thursday, May 23, 2013

आम आदमी 

अर्थशास्त्रीय सिद्धांतों की भूलभुलैया 
 और आंकड़ों की बाजीगरी में 
गुम  हो जाता है 
आम आदमी !
हर पांच वर्ष में 
नयी योजना बनती है 
हर साल बजट आता  है 
साल दर साल 
गरीबी हटाओ ,रोजगार बढाओ 
और इंक्लूसिव ग्रोथ 
के नारे लगते हैं 
किन्तु खुद को जहाँ का तहां
खड़ा  पाता  है 
आम आदमी !
वृद्धि दर बढती है 
किन्तु आम आदमी की 
पॉकेट कटती है 
बढ़ते भ्रष्टाचार और महंगाई 
की चक्की में 
पिसता चला जाता है 
आम आदमी !
शहर में दौड़ती कारों 
ऊंची अट्टालिकाओं 
और महंगे मालों के बीच 
नून ,तेल ,लकड़ी भी जुटा नहीं पाता है 
आम आदमी !

                                      मंजुश्री 

Friday, May 3, 2013


     दौड़ 

सारे तीरथ भागे दौड़े 
मन की थाह न ली तो क्या?
इधर उधर बाहर को दौड़े 
घर की बात न की तो क्या?
हर एक को खुश करने में 
खुद की ख़ुशी नहीं पहचानी 
दुनिया भर को वक़्त दिया 
अपनों को दिया बिसार  तो क्या?
धन ,पद ,यश और काम की दौड़े 
मंजिल कभी मिली है क्या?
क्या राजा क्या रंक  धरा पर 
अंत सभी का एक हुआ ..
                            मंजुश्री