Thursday, November 29, 2012

बालिकाओं में कुपोषण -गंभीर प्रश्न

राजकीय  कन्या महाविद्यालय में राष्ट्रीय सेवा योजना की संयोजिका का पद भार सँभालने के साथ ही सामाजिक सिद्धांतों के परे जमीनी वास्तविकताओं का साक्षात्कार करने का अनुभव हो रहा है।कुछ स्थितियां मन मस्तिष्क को आंदोलित कर देती हैं। महाविद्यालय की छात्राओं  का हीमोग्लोबीन परीक्षण व रक्तदान शिविर के अनुभव निराशा जनक थे .लगभग 200 छात्राओं में से मुश्किल से 20  छात्राओं का हीमोग्लोबिन स्तर 10से ज्यादा था .कई का वजन   निर्धारित स्तर  से कम था .कुछ की आयु 18 वर्ष से कम होने के कारण रक्त दान संभव नहीं था .कुछ लडकियां रक्तदान के नाम से ही डर  गयी ......मुश्किल से 18 यूनिट रक्त इकठ्ठा हो पाया।किन्तु मेरे मन में यह शिविर अनेक प्रश्न छोड़ गया।
बालिकाएं कुपोषित क्यों हैं?ऐसी छात्राएं अध्ययन और अन्य कार्यों में पूरा योगदान दे पाएंगी क्या?क्या उन पर उनके परिवारों में पूरा ध्यान नहीं दिया जाता?ऐसा किस कारण  से है?गरीबी ,लिंग भेद ,लापरवाही या सौंदर्य वृद्धि की चेष्टा या फ़ास्ट फ़ूड संस्कृति?राजकीय महाविद्यालयों में अधिकांश संख्या ऐसे परिवारों की छात्राओं की होती है जो बहुत संपन्न नहीं होते।अतः पर्याप्त पोषण का आभाव सर्वाधिक प्रमुख कारण समझ में अत है।किन्तु अन्य कारण  भी कम उत्तरदायी नहीं हैं।आज  की बालिकाएं ही भविष्य में मातृत्व वहन  करेंगी .ये कैसी संतानों को जन्म देंगी?यह एक गंभीर समस्या है जिस पर माँ बाप को बहुत ध्यान देने की जरूरत है .पर्याप्त और उचित आहार कम कीमत में भी प्राप्त हो सकता है।अतः बच्चों की खान पान की आदतों पर ध्यान  देने की बहुत जरूरत है।फ़ास्ट फ़ूड पेट तो भर देते हैं किन्तु पोषण प्रदान नहीं करते।इनसे भी बच्चों को बचाने  की जरूरत है।स्वस्थ बालक बालिकाएं ही भविष्य में एक स्वस्थ  समाज की आधारशिला रख सकते हैं।

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