Friday, September 28, 2012

पानी की पुकार!

मैं......
नदियों और समुद्रों से भाप बन उड़ता
बादलों में समाता
फिर बरसता 
तुम्हारे घर आंगन ,झीलों ,नदियों 
वन ,उपवन में 
आकांक्षा यही है मेरी
कोई प्यासा न रहे
वन उपवन
हरे भरे रहें ....
मगर तुम क्या कर रहे हो?
तुम्हारी संख्या तो बढती ही जा रही है
कैसे बुझाऊँ तुम सबकी प्यास?
दिन प्रति दिन
भीड़ ही भीड़
तालाब ,कुओं बावडियों ,झीलों को पाट कर
वनों वृक्षों को काट कर
उगा रहे हो कंक्रीट के जंगल
जब मैं बरसता हूँ
मुझे बहा देते हो नालों में- व्यर्थ
क्या संचित नहीं कर सकते थे मुझे?
कि कुछ और लोगों की प्यास बुझ जाती
और कुछ और वृक्ष हरे हो जाते?
मेरी उपेक्षा क्यों?
क्योंकि मैं बहुत सस्ता हूँ इसलिए?
मैं नाराज और उदास हूँ
ख़त्म हो रहा हूँ
बहुत जल्दी जब मैं तुम्हारे बीच नहीं रहूँगा
तब समझ आयेगी तुम्हे मेरी कीमत
बोतलों की जगह शीशियों में खरीदोगे मुझे
लड़ोगे तीसरा विश्व युद्ध
तो याद करोगे कि
किस तरह बर्बाद किया था मुझे बेदर्दी से
वह दिन ज्यादा दूर नहीं
जब अपने बच्चों को सुनाओगे कहानी
की इस सूखी धरती पर
कभी होता था पानी!

Thursday, September 13, 2012


खंड खंड जिंदगी

खंड खंड जिंदगी
टुकड़ा टुकड़ा मैं!
जिंदगी का 
एक सिरा सँभालने की 
कोशिश करती हूँ
तो दूसरा छूट
जाता है..........
घर -परिवार
पति- बच्चे
सास -ससुर
नाते -रिश्तेदार
ऑफिस-बॉस 
ऊपर  से तीज -त्यौहारI
सुनती हो.....मम्मी....बहू...
की हमेशा लगती रहती है गुहार
और ऑफिस में अक्सर
बॉस की पड़ती है फटकार
इन सबके बीच
 'मैं ' गुम हो जाती हूँ
कोई नहीं पूछता 
अरे सुपर वुमन!
कहीं तुम भी तो नहीं हो बीमार?
खंड खंड जिंदगी
टुकड़ा टुकड़ा मैं
जिंदगी का 
एक सिरा सँभालने की 
कोशिश करती हूँ
तो दूसरा छूट
जाता है..........








मौन का संवाद

मैं लिख रही हूँ
किताब
जिंदगी की यथार्थ कविताओं की
क्या तुम पढ़ सकते हो?
मेरी आँखों में तैरते शब्द?
सुन सकते हो?
आंसुओं से टपकते गीत
मुस्कान के पीछे छिपा हुआ
दर्द का संगीत?
समझ सकते हो?
हर रोटी के साथ सिंकती मेरी भावनाएं?
चख सकते हो
सब्जी में उतरा कविता का रस?
बच्चों को बड़ा करने में 
मैं लिख रही हूँ
जिंदगी का महाकाव्य
उस रचना में
क्या तुम पढ़ सकते हो 
मेरा अनलिखा नाम?
घर में करीने से सजी चीजें
मेरी भावनाओं की 
उथल पुथल से उपजे 
नए छंद हैं
शायद तुम्हे पुराने लगें!
मैं तो लिख रही हूँ यथार्थ की कविता
मगर क्या तुम इतने साक्षर हो?
कि पढ़ सको
मेरे मौन का संवाद?