Monday, March 5, 2012

अंतर्बोध

कोशिश करती हूँ
हर पल को जीने की
हर पल से थोड़ी सी
खुशियों की चोरी की
मगर होता है अक्सर ऐसा क्यूं?
कई पल दे जाते हैं
दर्द का उमड़ता घुमड़ता एहसास
खुद से प्रश्न करती हूँ
ऐसा क्यूँ?
उत्तर मिलता है
हर पल को कहाँ बनाया है मैंने अपना
वो तो गिरवी है औरों के पास
नियंत्रण नहीं मेरा किसी पर
इसलिए मिलते हैं घात प्रतिघात
अपनी  ख़ुशी के लिए औरों पर
निर्भर न बन
सूरज की तरह  न सही
 दीप सी जल
रौशनी दे औरों को
उर्जा और ख़ुशी का अजस्र श्रोत तो है
मेरे ही पास!


1 comment:

  1. ...जीवन के हरेक भावों को बहुत सुंदर और सटीक शब्द दिए हैं..बधाई!

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