Tuesday, January 31, 2012

जीवन संगीत


सृष्टि के रंगमंच में 
परमात्मा के संगीत निर्देशन में
प्रस्तुत है कार्यक्रम
हमारा जीवन संगीत
रूपक 
कलाकार हैं 
हम और आप
आर्केस्ट्रा के अन्य सदस्य हैं
हमारे मित्र ,परिवार और समाज
सतत प्रवाहमान काल में
हमारे जीवन का सूक्ष्म खंड
इसकी ताल है
जिसकी सात मात्राएँ हैं
मैत्री,करूणा,हर्ष,प्रेम,
समर्पण सहयोग और अहोभाव,
बड़े परिश्रम और समर्पण से बन पाई है 
यह मधुर प्रस्तुति
कल हम रहें ना रहें
कला के अंकुर खिलते रहेंगे
और शो चलता रहेगा 
नए  नए कलाकारों के साथ
श्रोताओं ,
कहीं जाईयेगा नहीं!


Monday, January 23, 2012

मौन


हर नवीन  दिवस के प्रारंभ में
सूरज की पहली किरण फूटते पर
कुछ देर  के लिए
डूबना चाहती  हूँ अंतरतम में 
और सुनना चाहती हूँ 
मौन की झंकार!
किन्तु तभी 
घंटियों की मधुर ध्वनि गुम हो जाती है 
शुरू होजाता है 
ऊंची आवाज में 
लाउड़ स्पीकरों   का शोर........
अलग अलग मंदिरों में 
अलग अलग भगवानो की 
लगती है पुकार
सुबह सुबह कोई सुने न सुने 
कहीं प्रवचन देता है कोई स्व  घोषित 
धर्म का पहरेदार!
 किसी मस्जिद में लगती है
अल्ला हो अकबर की गुहार!
इन सबके बीच
मैं वंचित रह जाती हूँ 
सुनने से 
अस्तित्व की पुकार!


सम्पदा

स्वर्णाभ सूर्य
चांदी सा चन्द्रमा
हीरे से चमकते तारे 
बंद कर लो 
अपनी ह्रदय मंजूषा में 
जिस पर जरूरत नहीं 
किसी ताले की
न चोरी का भय 
महसूस करो 
आनंद लो जी भर
ग्रीष्म का उत्ताप 
वर्षा की रिमझिम फुहार 
शीत ऋतु की ठंडी बयार 
बच्चों की किलकारियां 
अपनों का प्यार 
पृथ्वी यान पर बैठ कर 
मुफ्त में 
परिक्रमा करो सूरज की
अंतरिक्ष में डोलो
कभी तो हृदय की तराजू  पर 
अपनी सम्पदा को तोलों  

 

एक फूल की चाह




कभी भी चाह नहीं थी मेरी
देवों के सिर चढ़ने की 
सुरबाला के गहनों में गुंथने की
 सिर्फ एक प्रार्थना की थी बनमाली से
उस पथ पर फेंकने की -
जिस पर जाते हैं अनेक वीर
मातृभूमि पर नवाने शीश !
पर हाय री  किस्मत!
आज क्या हो गया है मेरा हाल-
रोज बिंधता हूँ 
उन मालाओं और गुलदस्तों में 
जिनसे अभिनन्दन होता 
भ्रष्ट नेताओं और अफसरों का
जो मातृभूमि पर शीश नवाने वालों का
काटते हैं शीश!
और
तरह तरह  के घोटालों से
होते मालामाल!  
 

सपने



बार बार बनाती  हूँ 
सपनो के महल 
मैं बालू की भीत पर!
यथार्थ की लहरें उद्दाम
टकराती हैं बार बार 
ढह  जाता है महल
लहराता है 
आंसुओं का खारा समंदर
क्षितिज पर डूब रहे हैं सपने
फिर से निकलने के लिए.......

क्षण



चिंता भविष्य की
अतीत का गम?
अरे पगले होता हर क्षण ही
 हमारा पुनर्जन्म!
ये क्षण!
 जी रहे हैं जिसमे हम सब
क्या न था कल भविष्य?
या न होगा कल अतीत?
संवरने से इस क्षण के ही
संवारेगा य्ढ़ जन्म
तो क्यूँ न जीने की इस क्षण
में ही
कोशिश करें हम?

बूँद !



मैं एक बूँद !
समय की प्रवहमान नदी में
जीवन पथ पर
बहती जाती
बहती जाती
खुश हो निर्झर सा गाती
चट्टानों से टकराती
टूटती
फिर जुड़ जाती
कभी भंवर में फंसती
उबरती....समतल पर शांत हो जातो
जीवन पथ पर
बहती जाती
बहती जाती
अनंत महासागर में विलीन होने को....